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Do you think, does the god exist ?

RINI

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16 August, 2020

ज़िन्दगी कुछ कुछ ख़फ़ा है..!

 

कभी कभी लगता है क़ि....
ज़िन्दगी कुछ कुछ ख़फ़ा है..!
फ़िर ये सोच लेते हैं क़ि..
अजी छोड़िये भी........
ये कौन सा पहली दफ़ा है..!!

मजबूरी

 

घटाएं आ लगीं हैं आसमां पे......और दिन सुहाने हैं।
हमारी मजबूरी तो देखिये.....हमें बारिश में भी काग़ज़ कमाने हैं....

सावन

पतझड़ दिया था वक़्त ने सौगात में मुझे...
मैंने वक़्त की जेब से सावन चुरा लिया...!!

 

लिख नहीं पाता

कभी शब्दो में
तलाश न करना वज़ूद मेरा
मैं उतना लिख नहीं पाता
जितना महसूस करता हूँ....

 

ज़िंदगी

बड़े होंगे तो
ज़िंदगी अपने हिसाब से जियेंगे...!
बचपन के इस ख्याल पर,
अब रोज हंसी आती है...!!

 

मेरे ही हाथों पर मेरी तक़दीर लिखी है...
और मेरी ही तक़दीर पर मेरा बस नहीं चलता...

 

18 May, 2016

औकात

" अक्सर वही लोग उठाते है ....
हम पे उंगलियां,....
जिनकी 
हमे छुने की .....
औकात नहीं होती...

ज़िन्दगी

ना राज़ है..ज़िन्दगी..
ना नाराज़ है...ज़िन्दगी
बस जो है...
वो आज है..ज़िन्दगी..

कुछ लोगों को जलाया जाये.....

चलो आज फिर थोड़ा मुस्कुराया जाये...
बिना माचिस के कुछ लोगों को जलाया जाये.....

जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है,

जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है,
इस बात का मुझे बड़ा दु:ख नहीं है,
क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ,
बड़े सुख आ जाएं घर में
तो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूं।
यहां एक बात
इससॆ भी बड़ी दर्दनाक बात यह है कि,
बड़े सुखों को देखकर
मेरे बच्चे सहम जाते हैं,
मैंने बड़ी कोशिश की है उन्हें
सिखा दूं कि सुख कोई डरने की चीज नहीं है।
मगर नहीं
मैंने देखा है कि जब कभी
कोई बड़ा सुख उन्हें मिल गया है रास्ते में
बाजार में या किसी के घर,
तो उनकी आँखों में खुशी की झलक तो आई है,
किंतु साथ साथ डर भी आ गया है।
बल्कि कहना चाहिये
खुशी झलकी है, डर छा गया है,
उनका उठना उनका बैठना
कुछ भी स्वाभाविक नहीं रह पाता,
और मुझे इतना दु:ख होता है देख कर
कि मैं उनसे कुछ कह नहीं पाता।
मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि बेटा यह सुख है,
इससे डरो मत बल्कि बेफिक्री से बढ़ कर इसे छू लो।
इस झूले के पेंग निराले हैं
बेशक इस पर झूलो,
मगर मेरे बच्चे आगे नहीं बढ़ते
खड़े खड़े ताकते हैं,
अगर कुछ सोचकर मैं उनको उसकी तरफ ढकेलता हूँ।
तो चीख मार कर भागते हैं,
बड़े बड़े सुखों की इच्छा
इसीलिये मैंने जाने कब से छोड़ दी है,
कभी एक गगरी उन्हें जमा करने के लिये लाया था
अब मैंने उन्हें फोड़ दी है।
--रचनाकार: भवानीप्रसाद मिश्र

आदत

तुझसे जीतने की ऐसी बुरी आदत है मुझको .... दुआ करता हुँ मेरी बर्बादी का मंज़र भी ज़्यादा ही रहे....!!!!!

05 May, 2016

सैर

सैर कर दुनिया की गाफिल ज़िंदगानी फिर कहाँ..
ज़िंदगानी गर मिली तो नौजवानी फिर कहाँ..

19 October, 2015

ख़ुश

ख़ुश रहने के सारे सामान मयस्सर हों जिसे ,
उसे ख़ुश रहना भी आए ,ये ज़रूरी तो नहीं ।

धूल

किसी ने धूल क्या झोंकी
आँखों में ...
कम्बख़्त पहले से बेहतर
दिखने लगा ।

बस इतना दो प्रभू ...

बस इतना दो प्रभू ....
कि जम़ीन पर बैठूँ
तो लोग उसे मेरा बडप्पन कहें,
औकात नहीं॥

आस्तीनें

हमारी आस्तीनें क्या फ़टीं...
कि कई सांप बेघर हो गये....

आदमी को पहचानने का फन,

बातों से सीखा है हमने
आदमी को पहचानने का फन,
जो हल्के लोग होते है,
हर वक्त बातें भारी भारी

ज़माना

ज़माना बहुत तेज़ चलता है....•°
मैं एक दिन कुछ ना लिखूँ....•°
लोग मुझे भूलने लगते हैं.....

मतलब

"मतलब" का वजन बहुत ज्यादा होता है....
तभी तो "मतलब" निकलते ही रिश्ते हल्के हो जाते है.......

हालात

ये जो मेरे हालात हैं
एक दिन सुधर जायेंगे,,,,
लेकिन तब तक कई लोग
मेरी नजरों से उतर जायेंगे,,,,,

आसमां

जनाब मत पूछिए हद हमारी गुस्ताखियों की ,
हम आईना ज़मीं पर रखकर आसमां कुचल दिया करते है ।

अच्छी बाते

दुनिया में जितनी भी
अच्छी बाते है
सब कही जा चुकी है,
अब तो बस उन पर अमल
करना ही बाकी है..!!!

31 January, 2014

माँ

"किसी भी मुशकिल का अब किसी को हल नही मिलता , शायद अब घर से कोई माँ के पैर छूकर नही निकलता ! "

तस्बीह

ग़ालिब ने यह कह कर तोड़ दी तस्बीह (माला)..... गिनकर क्यों नाम लू उसका जो बेहिसाब देता है ।

वो शख्स

वो शख्स मेरी रग-रग से वाकिफ़ है इस तरह कि उसी पे हाथ रखता है, जो दुखती बहुत है

16 August, 2012

My Shower of Happiness......... my Daughter Rini Slideshow: Prabhakar’s trip to Sāgar (near Orchha) was created with TripAdvisor TripWow!


06 October, 2011

जो बीत गई सो बात गई

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
हरिवंशराय बच्चन

29 September, 2011

बेटी पारस है

गर बेटा वारस है, तो बेटी पारस है l
अगर बेटा वंश है, तो बेटी अंश है l
अगर बेटा आन है, तो बेटी शान है l
अगर बेटा तन है, तो बेटी मन है l
अगर बेटा मान है, तो बेटी गुमान है l
... ... .... अगर बेटा संस्कार, तो बेटी संस्कृति है l
अगर बेटा आग है, तो बेटी बाग़ है l
अगर बेटा दवा है, तो बेटी दुआ है l
अगर बेटा भाग्य है, तो बेटी विधाता है l
अगर बेटा शब्द है, तो बेटी अर्थ है l
अगर बेटा गीत है, तो बेटी संगीत है

14 October, 2010

मेरी छोटी सी बिटिया का ये बड़ा सवाल

मंदी के इस भयावह दौर में
टारगेट पूरे करने और नौकरी बचाने की जद्दोजहद में
रोजाना रात नौ बजे घर पहुंचता हूँ मैं
नहीं मिली एक महीने से कोई छुट्टी
इतवार या त्यौहार की भी नहीं


रोजाना सुबह स्कूल जाने से पहले
कह कर जाती है मेरी बिटिया
पापा जरूर अपने बॉस को कहना
जल्दी घर जाना है आज मुझे

आप आफिस से जल्दी आओगे
तो पहले हन दोनों चलेंगे कालोनी के पार्क
खूब खेलूंगी जहां मैं आपके साथ
फिर आप मैं और मम्मी जायेंगे बाजार
मैं तो ढेर सारी आइसक्रीम खाउंगी
रात का खाना खायेंगे घर से बाहर

इस तरह खूब मजा करेंगे हम लोग

रोज उसे प्रॉमिस करके निकलता हूं घर से
पिस जाता हूँ काम की चक्की में फिर से
थका हारा पहुंचता हूँ वही रात नौ बजे
सोने की तैयारी कर रही होती है मेरी बेटी
बहुत गुस्सा दिखाती है बड़ा मुंह फुलाती है
पापा आज मैं आप से एकदम कुट्टा हूं


उसे मनाता हूं सुलाता हूं खुद भी सोता हूं
उसके बचपन की खुशियों को रोजाना खोता हूं


आज एक बार फिर देर से पहुंचा मैं घर
बिल्कुल नाराज नहीं हुई वो न मुंह फुलाया
मेरी पीठ पर चढ़ी बांहौं में लपेटा मुझको
बार बार चूमा मेरे सिर, गर्दन और चेहरे को

फिर फुसफुसाते हुए कान में किया वो सवाल...

पापा क्या आपके बॉस को इतना भी नहीं पता?

कि घर में रिनी आपका इंतजार करती है


नि:शब्द निरुत्तर हूँ मैं

समझाने या दुलारने की हिम्मत नहीं मुझमें

काश.....

सारी दुनिया के ये 'बॉस' लोग सुन पाते
मेरी छोटी सी बिटिया का ये बड़ा सवाल...



...



क्या जवाब दूँ मैं उसे ?

( With thanks to shri praveen shah )

प्यारी बिटिया

किसी पेड़ की इक डाली को,
नव जीवन का सुख देने
नव प्रभात की किरणों को ले,
खुशियों से आंचल भर देने
दूर किसी परियों के गढ़ से, नव कोंपल बन आई बिटिया।
सबके मन को भायी बिटिया, अच्छी प्यारी सुन्दर बिटिया॥

आंगन में गूंजे किलकारी,
जैसे सात सुरों का संगम
रोना भी उसका मन भाये,
पर हो जाती हैं, आंखें नम
इतराना इठलाना उसका,
मन को मेरे भाता है
हर पीड़ा को भूल मेरा मन,
नए तराने गाता है
जीवन के बेसुरे ताल में, राग भैरवी लायी बिटिया।
सप्त सुरों का लिए सहारा, गीत नया कोई गाई बिटिया॥

बस्ते का वह बोझ उठा,
कांधे पर पढ़ने जाती है
शाम पहुंचती जब घर हमको,
आंख बिछाए पाती है
धीरे-धीरे तुतलाकर वह,
बात सभी बतलाती है
राम रहीम गुरु ईसा के,
रिश्‍ते वह समझाती है
कभी ज्ञान की बातें करती, कभी शरारत करती बिटिया।
एक मधुर मुस्कान दिखाकर हर पीड़ा को हरती बिटिया॥

सुख और दुख जीवन में आते,
कभी हंसाते कभी रुलाते
सुख को तो हम बांट भी लेते,
दुख जाने क्यूं बांट न पाते
अंतर्मन के इक कोने में,
टीस कभी रह जाती है
मैं ना जिसे बता पाता हूं,
ना जुबान कह पाती है।
होते सब दुख दूर तभी, जब माथा सहलाती बिटिया।
जोश नया भर जाता मन में, जब धीमे मुस्काती बिटिया॥

लोग मूर्ख जो मासूमों से,
भेदभाव कोई करते हैं
जिम्मेदारी से बचने को
कई बहाने रचते हैं
बेटा-बेटी दिल के टुकड़े,
इक प्यारी इक प्यारा है
बेटा-बेटी एक समान,
हमने पाया नारा है
घर की बगिया में जो महके, सुन्दर कोमल फूल है बिटिया।
पाप भगाने तीरथ ना जा, सब तीरथ का मूल है बिटिया॥

मान मेरा सम्मान है बिटिया, अब मेरी पहचान है बिटिया।
ना मानो तो आ कर देखो, मां-पापा की जान है बिटिया॥
मेरी बिटिया सुन्दर बिटिया,
मेरी बिटिया प्यारी बिटिया॥

मेरी बिटिया

उंगली पकड़ती है, पीछे से चलती है,
कहते हैं, मेरी है परछाई बिटिया।

घूंघर-से बालों में तितली और पाखी,
रंगों से जीवन को भर आई बिटिया।

साड़ी के आंचल में, चुन्नी के झालर में,
चूड़ी की खन-खन में शरमाई बिटिया।

माथे पे मैंने जो सूरज को रखा तो
किरणों से बिंदिया सजा आई बिटिया।


नन्हीं-सी बांहें और गर्दन का झूला,
मुझको हिंडोला बना आई बिटिया।

अपनी हथेली के पीछे से झांका और
खिल-खिलकर थोड़ा-सा मुस्काई बिटिया।

(With thanks to Anu singh choudhary ji, noida, U.P.)

26 September, 2010

मेरी बेटी

मेरी बेटी बनती है
मैडम
बच्चों को डाँटती जो दीवार है
फूटे बरसाती मेज़ कुर्सी पलंग पर
नाक पर रख चश्मा सरकाती
(जो वहाँ नहीं है)
मोहन
कुमार
शैलेश
सुप्रिया
कनक
को डाँटती
ख़ामोश रहो
चीख़ती
डपटती
कमरे में चक्कर लगाती है
हाथ पीछे बांधे
अकड़ कर
फ़्राक के कोने को
साड़ी की तरह सम्हालती
कापियाँ जाँचती
वेरी पुअर
गुड
कभी वर्क हार्ड
के फूल बरसाती
टेढ़े-मेढ़े साइन बनाती

वह तरसती है
माँ पिता और मास्टरनी बनने को
और मैं बच्चा बनना चाहता हूँ
बेटी की गोद में गुड्डे-सा
जहाँ कोई मास्टर न हो!

उठ मेरी बेटी सुबह हो गई।

पेड़ों के झुनझुने,
बजने लगे;
लुढ़कती आ रही है
सूरज की लाल गेंद।
उठ मेरी बेटी सुबह हो गई।

तूने जो छोड़े थे,
गैस के गुब्बारे,
तारे अब दिखाई नहीं देते,
(जाने कितने ऊपर चले गए)
चांद देख, अब गिरा, अब गिरा,
उठ मेरी बेटी सुबह हो गई।

तूने थपकियां देकर,
जिन गुड्डे-गुड्डियों को सुला दिया था,
टीले, मुंहरंगे आंख मलते हुए बैठे हैं,
गुड्डे की ज़रवारी टोपी
उलटी नीचे पड़ी है, छोटी तलैया
वह देखो उड़ी जा रही है चूनर
तेरी गुड़िया की, झिलमिल नदी
उठ मेरी बेटी सुबह हो गई।

तेरे साथ थककर
सोई थी जो तेरी सहेली हवा,
जाने किस झरने में नहा के आ गई है,
गीले हाथों से छू रही है तेरी तस्वीरों की किताब,
देख तो, कितना रंग फैल गया

19 September, 2010

सांप होते हैं आस्तीनों में

र होता है अब महीनों में
ज़िन्दगी ढल गयी मशीनों में

प्यार की रोशनी नहीं मिलती
इन मकानों में, इन मकीनों में

देख कर दोस्ती का हाथ बढ़ाओ
सांप होते हैं आस्तीनों में

कहर की आँख से न देख इनको
दिल धड़कते हैं आबगीनों में

आसमानों की खैर हो या रब
एक नया अज़्म है ज़मीनों में

वोः मोहब्बत नहीं रही जालिब
हम-सफ़ीरों में, हम-नशीनों में

09 August, 2010

I Cannot Change

I Cannot Change

I cannot change the way I am,
I never really try,
God made me different and unique,
I never ask him why.
If I appear peculiar,
There's nothing I can do,
You must accept me as I am,
As I've accepted you.
God made a casting of each life,
Then threw the old away,
Each child is different from the rest,
Unlike as night from day.
So often we will criticize,
The things that others do,
But, do you know, they do not think,
The same as me and you.
So God in all his wisdom,
Who knows us all by name,
He didn't want us to be bored,
That's why we're not the same.

अरे उतावले!!

ओ घोड़ी पर बैठे दूल्हे क्या हँसता है!!
देख सामने तेरा आगत मुँह लटकाए खड़ा हुआ है .
अब हँसता है फिर रोयेगा ,
शहनाई के स्वर में जब बच्चे चीखेंगे.
चिंताओं का मुकुट शीश पर धरा रहेगा.
खर्चों की घोडियाँ कहेंगी आ अब चढ़ ले.
तब तुझको यह पता लगेगा,
उस मंगनी का क्या मतलब था,
उस शादी का क्या सुयोग था.

अरे उतावले!!
किसी विवाहित से तो तूने पूछा होता,
व्याह-वल्लरी के फूलों का फल कैसा है.
किसी पति से तुझे वह बतला देगा,
भारत में पति-धर्म निभाना कितना भीषण है,
पत्नी के हाथों पति का कैसा शोषण है.

ओ रे बकरे!!
भाग सके तो भाग सामने बलिवेदी है.
दुष्ट बाराती नाच कूद कर,
तुझे सजाकर, धूम-धाम से
दुल्हन रुपी चामुंडा की भेंट चढाने ले जाएँगे.
गर्दन पर शमशीर रहेगी.
सारा बदन सिहर जाएगा.
भाग सके तो भाग रे बकरे,
भाग सके तो भाग.

ओ मंडप के नीचे बैठे मिट्टी के माधो!!
हवन नहीं यह भवसागर का बड़वानल है.
मंत्र नहीं लहरों का गर्जन,
पंडित नहीं ज्वार-भाटा है.
भाँवर नहीं भँवर है पगले.
दुल्हन नहीं व्हेल मछली है.
इससे पहले तुझे निगल ले,
तू जूतों को ले हाथ में यहाँ से भग ले.
ये तो सब गोरखधंधा है,
तू गठबंधन जिसे समझता,
भाग अरे यम का फंदा है.

ओ रे पगले!!
ओ अबोध अनजान अभागे!!
तोड़ सके तो तोड़ अभी हैं कच्चे धागे.
पक जाने पर जीवन भर यह रस्साकशी भोगनी होगी.
गृहस्थी की भट्टी में नित कोमल देह झोंकनी होगी.

अरे निरक्षर!!
बी. ए., एम. ए. होकर भी तू पाणी-ग्रहण
का अर्थ समझने में असफल है.
ग्रहण ग्रहण सब एक अभागे.
सूर्य ग्रहण हो, चन्द्र ग्रहण हो,
पाणी ग्रहण हो.
ग्रहण ग्रहण सब एक अभागे.
तो तोड़ सके तो तोड़ अभी हैं कच्चे धागे
और भाग सके तो भाग यहाँ से जान छुड़ाके.

जिए जा रहा हूँ मैं

दाल-रोटी दी तो दाल-रोटी खा के सो गया मैं
आँसू दिये तूने आँसू पिए जा रहा हूँ मैं
दुख दिए तूने मैंने कभी न शिक़ायत की
जब सुख दिए सुख लिए जा रहा हूँ मैं
पतित हूँ मैं तो तू भी तो पतित पावन है
जो तू करा ता है वही किए जा रहा हूँ मैं
मृत्यु का बुलावा जब भेजेगा तो आ जाउंगा
तूने कहा जिए जा तो जिए जा रहा हूँ मैं

सुन ले

ओ ठोकर !
तू सोच रही
मैं बैठ जाऊंगी
रोकर,
भ्रम है तेरा
चल दूंगी मैं
फ़ौरन
तत्पर होकर।

ओ पहाड़!
कितना भी टूटे
हंस ले खेल बिगाड़,
मैं भी मैं हूं
नहीं समझ लेना
मुझको खिलवाड़।

ओ बिजली !
तूने सोचा
यूं मर जाएगी
तितली,
बगिया जल जाएगी
तितली रह जाएगी इकली।
कुछ भी कर ले
पंख नए
भीतर से उग आएंगे,
देखेगी तू
नन्हीं तितली
फिर उड़ान पर निकली।

ओ तूफ़ान !
समझता है
हर लेगा मेरे प्रान,
तिनका तिनका बिखराकर
कर देगा लहूलुहान !
इतना सुन ले
कर्मक्षेत्र में
जो असली इंसान,
उन्हें डिगाना
अपने पथ से
नहीं बहुत आसान।

ओ आंधी !
तूने भी
दुष्चक्रों की खिचड़ी रांधी,
जितना भैरव-नृत्य किया
मेरी जिजीविषा बांधी।
परपीड़ा सुख लेने वाली
तू भी इतना सुन ले
मेरे भी अंदर जीवित हैं
युग के गौतम-गांधी।

अरी हवा !
तू भी चाहे तो
दिखला अपना जलवा,
भोले नन्हें पौधे पर
मंडरा बन मन का मलवा।
कितनी भी प्रतिकूल बहे
पर इतना तू भी
सुन ले-
पुन: जमेगा
इस मिट्टी में
तुलसी का ये बिरवा।

परदे हटा के देखो

ये घर है दर्द का घर, परदे हटा के देखो,
ग़म हैं हंसी के अंदर, परदे हटा के देखो।

लहरों के झाग ही तो, परदे बने हुए हैं,
गहरा बहुत समंदर, परदे हटा के देखो।

चिड़ियों का चहचहाना, पत्तों का सरसराना,
सुनने की चीज़ हैं पर, परदे हटा के देखो।

नभ में उषा की रंगत, सूरज का मुस्कुराना
ये ख़ुशगवार मंज़र, परदे हटा के देखो।

अपराध और सियासत का इस भरी सभा में,
होता हुआ स्वयंवर, परदे हटा के देखो।

इस ओर है धुआं सा, उस ओर है कुहासा,
किरणों की डोर बनकर, परदे हटा के देखो।

ऐ प्रभाकर ये माना, हैं ख़ामियां सभी में,
कुछ तो मिलेगा बेहतर, परदे हटा के देखो।

08 August, 2010

Hosla to de,

Manzil na de charag na de hosla to de,
tinke ke ka hi sahi tu magar aasara to de.

Maine ye kab kaha ke mere haq me ho jawaab,
lekin khamosh kyun hey tun koi faisla to de.

Barson mein tere naam par khata raha fareb,
mere khuda kahan hai tun apna pata to de.

Beshak mere naseeb par rakh apna ekhtiyar,
lekin mere naseeb main kya hai bata to de

जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है

जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है,

ना माँ, बाप, बहन, ना यहाँ कोई भाई है.
हर लडकी का है Boy Friend, हर लडके ने Girl Friend पायी है,
चंद दिनो के है ये रिश्ते, फिर वही रुसवायी है.

घर जाना Home Sickness कहलाता है,
पर Girl Friend से मिलने को टाईम रोज मिल जाता है.
दो दिन से नही पुछा मां की तबीयत का हाल,
Girl Friend से पल-पल की खबर पायी है,
जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है…..

कभी खुली हवा मे घुमते थे,
अब AC की आदत लगायी है.
धुप हमसे सहन नही होती,
हर कोई देता यही दुहाई है.

मेहनत के काम हम करते नही,
इसीलिये Gym जाने की नौबत आयी है.
McDonalds, PizaaHut जाने लगे,
दाल-रोटी तो मुश्किल से खायी है.
जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है…..

Work Relation हमने बडाये,
पर दोस्तो की संख्या घटायी है.
Professional ने की है तरक्की,
Social ने मुंह की खायी है.
जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है

मुक्ति

चिडि़या को लाख समझाओ

कि पिंजड़े के बाहर

धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,

वहॉं हवा में उन्‍हें

अपने जिस्‍म की गंध तक नहीं मिलेगी।

यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,

पर पानी के लिए भटकना है,

यहॉं कटोरी में भरा जल गटकना है।

बाहर दाने का टोटा है,

यहॉं चुग्‍गा मोटा है।

बाहर बहेलिए का डर है,

यहॉं निर्द्वंद्व कंठ-स्‍वर है।

फिर भी चिडि़या

मुक्ति का गाना गाएगी,

मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी,

पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी,

हरसूँ ज़ोर लगाएगी

और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।

अब तो पथ यही है

जिंदगी ने कर लिया स्वीकार,
अब तो पथ यही है|

अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है,
एक हलका सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है,
यह शिला पिघले न पिघले, रास्ता नम हो चला है,
क्यों करूँ आकाश की मनुहार ,
अब तो पथ यही है |

क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए,
एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,
एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए,
आज हर नक्षत्र है अनुदार,
अब तो पथ यही है|

यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,
यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,
अब तो पथ यही है |

कब वक़्त मिला

जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा
मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में,
हर एक यहाँ पर एक भुलाने में भूला
हर एक लगा है अपनी अपनी दे-ले में
कुछ देर रहा हक्का-बक्का, भौचक्का-सा,
आ गया कहाँ, क्या करूँ यहाँ, जाऊँ किस जा?
फिर एक तरफ से आया ही तो धक्का-सा
मेला जितना भड़कीला रंग-रंगीला था,
मानस के अन्दर उतनी ही कमज़ोरी थी,
जितना ज़्यादा संचित करने की ख़्वाहिश थी,
उतनी ही छोटी अपने कर की झोरी थी,
जितनी ही बिरमे रहने की थी अभिलाषा,
उतना ही रेले तेज ढकेले जाते थे,
क्रय-विक्रय तो ठण्ढे दिल से हो सकता है,
यह तो भागा-भागी की छीना-छोरी थी;
अब मुझसे पूछा जाता है क्या बतलाऊँ
क्या मान अकिंचन बिखराता पथ पर आया,
वह कौन रतन अनमोल मिला ऐसा मुझको,
जिस पर अपना मन प्राण निछावर कर आया,
यह थी तकदीरी बात मुझे गुण दोष न दो
जिसको समझा था सोना, वह मिट्टी निकली,
जिसको समझा था आँसू, वह मोती निकला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

मैं कितना ही भूलूँ, भटकूँ या भरमाऊँ,
है एक कहीं मंज़िल जो मुझे बुलाती है,
कितने ही मेरे पाँव पड़े ऊँचे-नीचे,
प्रतिपल वह मेरे पास चली ही आती है,
मुझ पर विधि का आभार बहुत-सी बातों का।
पर मैं कृतज्ञ उसका इस पर सबसे ज़्यादा -
नभ ओले बरसाए, धरती शोले उगले,
अनवरत समय की चक्की चलती जाती है,
मैं जहाँ खड़ा था कल उस थल पर आज नहीं,
कल इसी जगह पर पाना मुझको मुश्किल है,
ले मापदंड जिसको परिवर्तित कर देतीं
केवल छूकर ही देश-काल की सीमाएँ
जग दे मुझपर फैसला उसे जैसा भाए
लेकिन मैं तो बेरोक सफ़र में जीवन के
इस एक और पहलू से होकर निकल चला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
मैंने भी बहना शुरू किया उस रेले में,
क्या बाहर की ठेला-पेली ही कुछ कम थी,
जो भीतर भी भावों का ऊहापोह मचा,
जो किया, उसी को करने की मजबूरी थी,
जो कहा, वही मन के अंदर से उबल चला,
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला

05 August, 2010

बेटी

आह्लादित हूँ, गर्वित हूँ
बेटी तुमको पाकर अभिमानित हूँ-
तुमको पाकर पाया मैंने एक अनूठा विश्वास
हर रिश्ते के मूल में तुम्हीं तो थी खड़ी
कभी दादी बन दुलराया तुमने
कभी माँ बन समझाया तुमने
कभी करी सखी समान ठिठोली
अगले ही पल थी तुम बिंदास पहेली
कभी तन खड़ी होती तुम बन सुदृढ़ दीवार
कभी बन जाती तुम बरगद की शीतल छाँह
कभी तुम लगती सावन की पहली फुहार
कभी शीत की सलोनी धूप सी,
कभी फागुन की मीठी बयार,
कभी तुम एहसास दिलाती-
'हाँ मैं भी हूँ कुछ खास '
कभी बन रौनक त्यौहार की
कर देती घर गुलज़ार
कभी बन टीस उतर जाती तुम दिल में
न जाने कितने दिन का साथ
बन सपना पलती आँखों में
सराबोर कर जाती मन
हर पल कुछ होता खास
तुम में पाया बचपन अपना
तुम में पाया अल्हड़पन
हर पल तुममें जिया खुद को
हर पल तुममे पाया खुद को
तुम हो मेरी प्रतिकृति
तुम हो मेरी अनुकृति
आह्लादित हूँ, गर्वित हूँ,
बेटी तुमको पाकर मै अभिमानित हूँ ।

Follow your heart

Follow your heart with no doubt. If it's right, you'll succeed. If it's wrong, you'll learn.

04 August, 2010

एक दिन चाहूंगा

सुदूर कामना
सारी ऊर्जाएं
सारी क्षमताएं खोने पर,
यानि कि
बहुत बहुत
बहुत बूढ़ा होने पर,
एक दिन चाहूंगा
कि तू मर जाए।
(इसलिए नहीं बताया
कि तू डर जाए।)

हां उस दिन
अपने हाथों से
तेरा संस्कार करुंगा,
उसके ठीक एक महीने बाद
मैं मरूंगा।
उस दिन मैं
तुझ मरी हुई का
सौंदर्य देखूंगा,
तेरे स्थाई मौन से सुनूंगा।

क़रीब,
और क़रीब जाते हुए
पहले मस्तक
और अंतिम तौर पर
चरण चूमूंगा।
अपनी बुढ़िया की
झुर्रियों के साथ-साथ
उसकी एक-एक ख़ूबी गिनूंगा
उंगलियों से।

झुर्रियों से ज़्यादा
ख़ूबियां होंगी
और फिर गिनते-गिनते
गिनते-गिनते
उंगलियां कांपने लगेंगी
अंगूठा थक जाएगा।

फिर मन-मन में गिनूंगा
पूरे महीने गिनता रहूंगा
बहुत कम सोउंगा,
और छिपकर नहीं
अपने बेटे-बेटी
पोते-पोतियों के सामने
आंसुओं से रोऊंगा।

एक महीना
हालांकि ज़्यादा है
पर मरना चाहूंगा
एक महीने ही बाद,
और उस दौरान
ताज़ा करूंगा
तेरी एक-एक याद।

आस्तिक हो जाऊंगा
एक महीने के लिए
बस तेरा नाम जपूंगा
और ढोऊंगा
फालतू जीवन का साक्षात् बोझ
हर पल तीसों रोज़।

इन तीस दिनों में
काग़ज़ नहीं छूउंगा
क़लम नहीं छूउंगा
अख़बार नहीं पढूंगा
संगीत नहीं सुनूंगा
बस अपने भीतर
तुझी को गुंजाउंगा
और तीसवीं रात के
गहन सन्नाटे में
खटाक से मर जाउंगा।

22 July, 2010

PRABHAKAR Means "light maker", derived from Sanskrit प्रभा (prabha) "light" and कर (kara) "maker". This is a name given to the sun in Hindu texts. It was also borne by a medieval Hindu scholar.

12 June, 2010

Who I am ?

Who I am ? From where I came from ? Where I will go ? If any body knows, please answer me.

31 May, 2010

nothing to say.......

I am suffering from most severe boring part of my life. I do nothing creative,but only daily routine work. But many many thanks to god that he is favouring me a lot...

08 January, 2010

Jai hanuman

jai hanuman gyan gun sagar, jai kapish tihun loke ujagar