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PRABHAKAR KANDYA
Welcome,
Now you are going to enter the world of suspence........
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19 October, 2015
ख़ुश
ख़ुश रहने के सारे सामान मयस्सर हों जिसे ,
उसे ख़ुश रहना भी आए ,ये ज़रूरी तो नहीं ।
धूल
किसी ने धूल क्या झोंकी
आँखों में ...
कम्बख़्त पहले से बेहतर
दिखने लगा ।
बस इतना दो प्रभू ...
बस इतना दो प्रभू ....
कि जम़ीन पर बैठूँ
तो लोग उसे मेरा बडप्पन कहें,
औकात नहीं॥
आस्तीनें
हमारी आस्तीनें क्या फ़टीं...
कि कई सांप बेघर हो गये....
आदमी को पहचानने का फन,
बातों से सीखा है हमने
आदमी को पहचानने का फन,
जो हल्के लोग होते है,
हर वक्त बातें भारी भारी
ज़माना
ज़माना बहुत तेज़ चलता है....•°
मैं एक दिन कुछ ना लिखूँ....•°
लोग मुझे भूलने लगते हैं.....
मतलब
"मतलब" का वजन बहुत ज्यादा होता है....
तभी तो "मतलब" निकलते ही रिश्ते हल्के हो जाते है.......
हालात
ये जो मेरे हालात हैं
एक दिन सुधर जायेंगे,,,,
लेकिन तब तक कई लोग
मेरी नजरों से उतर जायेंगे,,,,,
आसमां
जनाब मत पूछिए हद हमारी गुस्ताखियों की ,
हम आईना ज़मीं पर रखकर आसमां कुचल दिया करते है ।
अच्छी बाते
दुनिया में जितनी भी
अच्छी बाते है
सब कही जा चुकी है,
अब तो बस उन पर अमल
करना ही बाकी है..!!!
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