उंगली पकड़ती है, पीछे से चलती है,
कहते हैं, मेरी है परछाई बिटिया।
घूंघर-से बालों में तितली और पाखी,
रंगों से जीवन को भर आई बिटिया।
साड़ी के आंचल में, चुन्नी के झालर में,
चूड़ी की खन-खन में शरमाई बिटिया।
माथे पे मैंने जो सूरज को रखा तो
किरणों से बिंदिया सजा आई बिटिया।
नन्हीं-सी बांहें और गर्दन का झूला,
मुझको हिंडोला बना आई बिटिया।
अपनी हथेली के पीछे से झांका और
खिल-खिलकर थोड़ा-सा मुस्काई बिटिया।
(With thanks to Anu singh choudhary ji, noida, U.P.)
14 October, 2010
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