र होता है अब महीनों में
ज़िन्दगी ढल गयी मशीनों में
प्यार की रोशनी नहीं मिलती
इन मकानों में, इन मकीनों में
देख कर दोस्ती का हाथ बढ़ाओ
सांप होते हैं आस्तीनों में
कहर की आँख से न देख इनको
दिल धड़कते हैं आबगीनों में
आसमानों की खैर हो या रब
एक नया अज़्म है ज़मीनों में
वोः मोहब्बत नहीं रही जालिब
हम-सफ़ीरों में, हम-नशीनों में
19 September, 2010
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